उल्हासनगर:
विगत कई वर्षों से उल्हासनगर में धोखादायक इमारतों का मुद्दा जस का तस अवस्था में है। खासकर हर साल मानसून के दौरान शहर भर में कहीं ना कहीं इमारतों के स्लैब अथवा इमारत गिरने की घटना सामने आती है और लोग मरते एवं घायल होते हैं। इस दौरान राजनीति भी खूब होती है और फिर हादसे के दो चार दिन बाद सभी ये मामले तबतक भूल जाते हैं जबतक कोई नया हादसा नहीं होता। ये सिलसिला वर्षों से होता चला आ रहा है। लेकिन अबतक धोखादायक इमारतों को लेकर कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है। हजारों लोगों की जान खतरे में होने के बावजूद इसकी सुध लेने वाला कोई है ही नहीं। मनपा प्रशासन भी खानापूर्ति कर अपना पल्ला झाड़ते नजर आ रही है। कुछ साल पूर्व शीतकालीन सत्र में विधान मंडल के पटल पर उल्हासनगर की धोकादायक इमारतों को लेकर एक अध्यादेश जारी करने की घोषणा की गई थी मगर लंबे अंतराल के बावजूद अबतक कोई हलचल तक नहीं है। मनपा प्रशासन हर साल मानसून आने से कुछ रोज पहले धोकादायक इमारतों की सूची जारी कर देती है। सबसे खतरनाक इमारतों को खाली करवाया लिया जाता है और उनमें एक-दो खतरानक इमारतों को तोड़ने की प्रक्रिया भी हो जाती है। लेकिन समस्या जस की तस चली आ रही है. लोगों का कहना है कि आखिर क्या वजह है कि शासन-प्रशासन उल्हासनगर की धोखादायक इमारतों के प्रति उदासीन रवैया अपनाये हुए है ? क्या प्रशासन को फिर किसी बड़े हादसे का इंतजार है ? आखिर कबतक इमारतों के गिरने से निरपराध लोगों की जानें जाती रहेगी या घायल होते रहेंगे ?
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