उल्हासनगर (आनंद कुमार शर्मा)
१६ जून को सिंधु सम्राट राजा दाहिरसेन को सिंध और हिन्द प्रान्त में आज बलिदान दिवस के रूप में उन्हें श्रधांजलि देकर याद किया जाता है।
सिंधु देश के आखरी हिन्दू राजा, राजा दाहिरसेन जी के बलिदान दिवस पर उल्हासनगर व्यापारी एसोसिएशन के अध्यक्ष जगदीश तेजवानी व सहयोगी जय कल्याणी , सिंधुकुमार राजपाल , भारत बठिजा ,सुनील भोईर सहित कई पदाधिकारियों ने उनकी शीला पर माल्यार्पण कर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की।
राजा दाहिर सिंध के सिंधी ब्राह्मण सैन राजवंश के अंतिम राजा थे। उनके समय में ही अरबों ने सर्वप्रथम सन ७१२ में भारत (सिंध) पर आक्रमण किया था। महान हिन्दू राजा दाहिरसेन ने ३२ सालों (६६३ से ७१२ ईसवी) तक मोहम्मद बिन कासिम को सिन्ध से ही आगे नहीं बढ्ने दिया।
उन्होंने अपने शासनकाल में अपने सिंध प्रांत को बहुत ही मजबूत बनाया परंतु अपने राष्ट्र और देश की रक्षा के लिए उन्होंने मोहम्मद बिन कासिम की लड़ाई लड़ी और ७१२ में उनका सिंधु नदी के किनारे उनकी मौत हो गयी।
पश्चिम में एक कहावत है कि पहले दुश्मन को बुरा नाम दो और फिर उसे मार दो। ऐसा ही कुछ मुस्लिम इतिहासकारों ने किया, उन्होंने सिंध के आखिरी हिन्दू राजा को बदनाम करने में कोई कसर न छोड़ी, क्यूंकि उस हिन्दू राजा ने ३२ साल तक उनको आगे नहीं बढ़ने दिया था।
पुष्करणा ब्राह्मण राजा दाहिरसेन को बदनाम करने के लिए अपनी ही बहन से विवाह करने के मनगढंत किस्से लिखने शुरू किये, अगर कोई हिन्दू धर्म को समझता है तो वो समझ सकता है कि अपनी ही बहन से विवाह करना हिन्दू धर्म की नही दुसरे धर्मों की प्रथा है और ये मुस्लिम इतिहासकारों का सफेद झूठ था उनको आने वाले समय में बदनाम करने के लिए गया था।
हिन्दू इतिहास पर गौर किया जाए तो पुण्य सलिला सिंध भूमि वैदिक काल से ही वीरों की भूमि रही है। वेदों की ऋचाओं की रचना इस पवित्र भूमि पर बहने वाली सिंधु नदी के किनारों पर हुई, इसी पवित्र भूमि पर पौराणिक काल में कई वीरों व वीरांगनाओं को जन्म दिया है। जिनमें त्रेता युग में महाराज दशरथ की पत्नी कैकेयी और द्वापर युग में महाराजा जयदरथ का नाम भी शामिल है।
राजा दाहिर एक महान हिन्दू शासक थे जिहोने युद्ध क्षेत्र में लड़ते हुए प्राण न्योछावर किये l उनकी सुंदर बेटियों को इस्लामी परंपरा के तहत युद्ध में लूट के रूप में कब्जा लिया गया। मुहम्मद बिन कासिम ने उनकी बेटियों को उस समय के खलीफा सुलेमान बिन अब्द अल मलिक के सामने उपहार के रूप में भेजा।
अंत में उनकी ही बेटियों ने पहले सूझ बुझ और अक्लमंदी से खलीफा के हाथों मुहम्मद बिन कासिम को मरवा कर अपना बदला लिया और बाद में खुद को खलीफा से बचाते हुए एक दुसरे को ही मार दिया।
राजा और उनकी बेटियों के बलिदानों से प्रेरित होकर ही सिंधी लेखक ने यह पंक्तियां लिखी हैं -
हीउ मुहिजो वतन मुहिजो वतन मुहिजो वतन,
माखीअ खां मिठिड़ो, मिसरीअ खां मिठिड़ो,
संसार जे सभिनी देशनि खां सुठेरो।
कुर्बान तंहि वतन तां कयां पहिंजो तन बदन,
हीउ मुंहिजो वतन मुहिजों वतन मुहिजो वतन।
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