उल्हासनगर : (आनंद कुमार शर्मा) कोरोना संक्रमण के प्रकोप से बचने के लिए सरकार ने 21 दिन का लॉक डाउन घोषित करने के पश्चात अतिआवश्यक सेवाएं जिसमें हॉस्पिटल सबसे महत्वपूर्ण है, वोही अग़र सेवा करने मे लापरवाही दिखा रहे है। आज उल्हासनगर के सेंट्रल हॉस्पिटल में अगर कोई बीमार व्यक्ति इलाज कराने जाता है तो वहां नॉन मेडिकल स्टाफ के ना होने के कारण डॉक्टर और उनकी टीम समय पर बीमार व्यक्ति का इलाज नहीं कर पाते पेशेंट और उनके साथ आए हुए लोगों को घंटो तक इंतजार करना पड़ता है कि कब ऑफिस का स्टाफ आकर केस पेपर निकाले और उसके बाद ही डॉक्टर उनका इलाज करें। एसी घटना को सामने लाया हमारे शहर के समाजसेवी प्रदीप दुर्गिया ने, जिन्हें 29 मार्च को रात 9:00 बजे के करीब रस्ते पर कुत्ते ने काट लिया जब वह सेंट्रल हॉस्पिटल पहुंचे तब वहां का नजारा कुछ ऐसा था कि जिसे देखकर वह खुद दंग रह गए, उनके पहुंचने से पहले भी एक व्यक्ति जिन्हें कुत्ता काटा था वह आधे घंटे से इंतजार कर रहा था, और भी तीन मरीज कतार में बैठ कर सेंट्रल हॉस्पिटल के आफिस स्टाफ का इंतजार करते दिखे। उनके जाने के बाद जब पूछा गया कि कुत्ते ने काटा है इलाज क्यों नहीं कर रहे हो तो डॉक्टरों और उनके सहायकों ने बताया कि केस पेपर वाला कोई नहीं है जब तक रजिस्टर में एंट्री नहीं होगी तब तक वह इंजेक्शन नहीं दे पाएंगे, काफी जद्दोजहद मशक्कत के बाद एक घंटा इंतजार करने के पश्चात एक सहकर्मी आकर रजिस्टर में एंट्री की और उसके बाद ही डॉक्टर और उनके सहायकों ने प्रदीप दुर्गीया और उनके पहले से मौजूद तीन मरीजों और एक कुत्ते काटने के कारण पहले से बैठे आदमी का इलाज शुरू किया गया।
जब हॉस्पिटल के निवासी डॉक्टर से इसके बारे में पूछा गया अगर समय पर इलाज नही किया तो जहर फैलने का डर है और अगर रैबिज हो गया तो सामने वाले कि जान भी जा सकती है, इस पर उन्होंने बात करने से पहले मना कर दिया, लेकिन जब सेंट्रल अस्पताल के मुख्य चिकित्सक डॉ सुधाकर शिंदे को फोन लगाया गया तब उस समय मौजूद निवासी डॉक्टर ने फोन लेकर ये जानकारी दी कि सेंट्रल अस्पताल में इस समय ओपीडी में डॉक्टर तो है परंतु नॉन मेडिकल स्टाफ नहीं है, हमने झाड़ू मारने वाले भाई को केसपेपर लिखने के लिये बिठाया है, कुत्ते काटने का इलाज या इंजेक्शन जो दिया जाएगा वो केसपेपर बनने के बाद ही दिया जाता है, क्योंकि उक्त पेपर पे इंजेक्शन के बारेमें डिटेल लिखनी पड़ती है इसलिए हम मजबूर थे कि पहले केसपेपर बनाओ बाद में इलाज सुरु किया जाएगा।
यहां एक बोहोत बड़ा प्रश्न ये उठता है कि इस संकट की घड़ी में जहां पूरे देश में कोरोना के वजह से सारे डॉक्टर और प्रशासनिक स्टाफ दिन रात सेवा प्रदान करने मे लगा है, जहाँ पूरे देश में पूरे शहर में, अतिआवश्यक सेवाओं में हॉस्पिटल को सतर्क रहने की हिदायत दी गई है इस परिस्थिति में अगर नॉन मेडिकल स्टाफ के वजह से कोई हादसा हो जाता है तो कौन इसकी जवाबदारी लेगा....???
Post a Comment
Click to see the code!
To insert emoticon you must added at least one space before the code.